Friday, September 8, 2017

मार्कण्डेय आदि मुनियों तथा मंत्रियों का वसिष्ठ जी से किसी को राजा के बनाने के लिए अनुरोध

श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्

सप्तषष्टितम: सर्गः
मार्कण्डेय आदि मुनियों तथा मंत्रियों का राजा के बिना होनेवाली देश की दुरवस्था का वर्णन करके वसिष्ठ जी से किसी को राजा के बनाने के लिए अनुरोध 

राजा नहीं हो जिस राज्य में, वीरों का अभ्यास न होता
प्रत्यंचा व करतल का भी, शब्द सुनाई कहीं न देता

जा दूर देश करें व्यापार, वणिकों को सम्भव न होता
संध्या काल में  डेरा डाले, मुनि भी ऐसा नहीं विचरता

अप्राप्त की प्राप्ति न होती, प्राप्त वस्तु की रक्षा भी नहीं
शत्रु सामना नहीं कर पाए, राजा न हो तब सेना भी

शास्त्रों के ज्ञाता, विद्वान, वन-उपवन में विचरण न करते
देवों की पूजा के हित जन, पुष्प, मिठाई आदि न देते

चन्दन, अगरु लेप लगाये, राजकुमार न शोभा पाते
जहाँ कोई राजा न होता, ज्ञानी भी सम्मान न पाते

जल बिन नदी, घास बिन जंगल, ग्वालों बिना न शोभें गायें
उसी प्रकार बिना राजा के, कोई राज्य न शोभा पाए

ध्वजा दिखा देता ज्यों रथ को, धूम्र दिखाता है अग्नि को
राजा ही प्रकाशित करता है, राजकाज के अधिकार को

राजा के न रहने पर ही, वस्तुओं पर अधिकार न रहता
मछली ज्यों मछली को खाती, इक-दूजे को लूटे जनता

वेदशास्त्र, वर्णाश्रमधर्म की, मर्यादा भंग करें जो
नास्तिक जो पहले दबे थे, हो निशंक प्रकट अब होंगे

दृष्टि सदा तन हित में लगती, राजा सत्य-धर्म का वाहक
कुलवानों का कुल है राजा, माता-पिता व हित संवाहक

यम, कुबेर, इंद्र, वरुण से भी, राजा देवों से बढ़ जाता
भले-बुरे का भेद बताये, वही न हो कुछ सूझ न आता

सागर ज्यों सीमा में रहता, कहा वसिष्ठ से तब मिल सबने
 बात आपकी सदा ही मानी, राजा के जीवन काल में

जंगल बने हुए इस देश पर, दृष्टिपात करें हे मुनिवर !
राजकुमार या योग्य व्यक्ति को, अभिषिक्त करें राजपद पर

इस प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मित आर्ष रामायण आदिकाव्य के अयोध्याकाण्ड में सरसठवाँ सर्ग पूरा हुआ.


No comments:

Post a Comment