Wednesday, October 5, 2016

निषादराज गुह के समक्ष लक्ष्मण का विलाप

श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्

एकपंचाश: सर्गः
निषादराज गुह के समक्ष लक्ष्मण का विलाप

स्वाभाविक अनुराग था मन में, लक्ष्मण जगे रहे रात भर
शय्या उनकी पड़ी थी सूनी, गुह को अति संताप हुआ लख

कहा लक्ष्मण से, सो जाओ, जगा हूँ संग सेवकों के मैं
हमको तो अभ्यास है इसका, भलीभांति परिचित हैं वन से

श्रीराम से बढ़कर मुझको, नहीं प्रिय है कोई दूसरा
उनकी कृपा से ही इस जग में, धर्म-लाभ की आशा रखता

लिए हाथ में धनुष रात भर, करूंगा रक्षा मैं उनकी
अनायास हरा सकता हूँ, चतुरंगिणी सेना को भी

सुनकर कहा लक्ष्मण ने तब, हे निष्पाप निषादराज ! सुनो
तुम जब रक्षक बने हमारे, नहीं कोई भी भय है हमको

फिर भी जब सोये भूमि पर, दशरथ नंदन सीता के संग
निद्रा का सुख लेना मेरा, कैसे हो सकता है सम्भव  

देव, असुर सब मिलकर भी, जिनका वेग नहीं सह सकते
वे ही श्रीराम भूमि पर, तिनकों ऊपर कैसे सोये

गायत्री आदि मन्त्रों के, जप, तप व व्रत अनुष्ठान से
महाराज दशरथ ने पाया, पुत्र युक्त उत्तम लक्षण से

जीवित नहीं अधिक रह सकते, उनके वन में आ जाने से
निश्चय ही विधवा होगी अब, शीघ्र ही पृथ्वी इस कारण से

बड़े जोर से आर्तनाद कर, रनवास की सभी स्त्रियाँ
श्रम से थक चुप हो गयी होंगी, हाहाकार भी अति मचा

माताएं व राजा दशरथ, जीवित रहेंगे आज रात तक
कह नहीं सकता मैं इसको, होगा सबको ही भारी दुःख

शत्रुघ्न की बाट देखते, मेरी माँ जीवित रह सकती
किन्तु यदि न रहीं कौसल्या, दुःख की अति बात यह होगी

प्रिय वस्तु की प्राप्ति कराती, अनुरागी जहाँ श्रीराम के
पुरी अयोध्या नहीं बचेगी, निधनजनित दशरथ के दुःख से

कैसे टिकेंगे उनमें प्राण, जब नहीं देख पाएंगे राम
महाराज यदि नष्ट हुए तो, माता भी तज देंगी प्राण

मिले राज्य राम को उनका, पूर्ण मनोरथ नहीं हुआ यह
सब कुछ नष्ट हो गया मेरा, कहते हुए मरेंगे वह

जो इसके साक्षी होंगे, वे ही सफल मनोरथ नर हैं
यदि पिताजी रहेंगे जीवित, अयोध्या वासी भाग्यशाली हैं

सुंदर चौराहों से अलंकृत, देवमन्दिरों व महलों से
रथों, हाथियों से जो पूर्ण, बाग़-बगीचों उद्यानों से

सजी हुई है पुरी अयोध्या, जो लोग इसमें विचरेंगे
क्या लौटने तक महाराजा, पुनः हमको दर्शन देंगे  ?

क्या हम पुनः वहाँ जायेंगे ?, अवधि समाप्त जब होगी वन की
इस प्रकार विलाप करते ही, सारी रात जागते बीती 

लक्ष्मण थे प्रजा हितकारी, बड़े भाई के थे अनुरागी
उनकी बातें सुन निषाद को, हुई हार्दिक पीड़ा भारी


इस प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मित आर्ष रामायण आदिकाव्य के अयोध्याकाण्ड में इक्यावनवाँ सर्ग पूरा हुआ



No comments:

Post a Comment