Wednesday, March 30, 2016

सीतासहित श्रीराम का वशिष्ठपुत्र सुयज्ञ को बुलाकर उनके तथा उनकी पत्नी के लिए बहुमूल्य आभूषण, रत्न और धन आदि का दान

श्रीसीतारामचंद्राभ्यां नमः
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणम्
अयोध्याकाण्डम्

द्वात्रिंशः सर्गः

सीतासहित श्रीराम का वशिष्ठपुत्र सुयज्ञ को बुलाकर उनके तथा उनकी पत्नी के लिए बहुमूल्य आभूषण, रत्न और धन आदि का दान तथा लक्ष्मण सहित श्रीराम द्वारा ब्राह्मणों, ब्रह्मचारियों, सेवकों, त्रिजट ब्राह्मण और सुह्र्दज्ज्नों को धन का वितरण

प्रियकर, हितकर आज्ञा पाकर, लक्ष्मण गये सुयज्ञ के घर
अग्निशाला में बैठे थे, दिया निमन्त्रण नमस्कार कर

संध्योपासना कर सम्पन्न, श्रीराम के भवन में आये
अग्नि सम तेजस्वी थे वे, स्वागत किया राम-सीता ने

सुवर्ण मणि, सुंदर कुंडल से, केयूर, वलय अन्य रत्नों से
तेजस्वी, वेदवेत्ता थे, उनका पूजन किया राम ने

सीता की प्रेरणा से तब, कहे वचन तब ये सुयज्ञ से
सखी तुम्हारी पत्नी की जो, सीता उसे कुछ देना चाहे  

सुवर्ण सूत्र, हार, करधनी, अंगद और सुवर्ण केयूर
पलंग विभूषित बिछौनों से जो, ले जाओ तुम अपने घर

शत्रुंजय हाथी है मेरा, मामा ने जो भेंट किया
एक हजार अशर्फियों के संग, मैं तुमको अर्पित करता

श्रीराम के यह कहने पर, कीं ग्रहण वस्तुएँ विप्र ने
राम, लक्ष्मण, सीता के हित, तब सुंदर आशीर्वाद दिए  

शांतभाव से खड़े हुए तब, राम लक्ष्मण से बोले
कहते हैं जैसे ब्रह्मा, देवलोक के नृप इंद्र से

विश्वामित्र और अगस्त्य का, रत्नों से करो पूजन
 मेघ तृप्त ज्यों करें धरा को, तृप्त करो उनको दे धन

सोना-चाँदी, गौएँ, मणियाँ, भेंट करो आदर उनको दे
यजुर्वेदीय तैत्तिरीय शाखा, का जो अध्ययन करने वाले

वेदों के विद्वान्, आचार्य, जो दान पाने के योग्य
आशीवाद करें प्रदान, कौशल्या माँ के जो भक्त

दस-दासियाँ, वस्त्र, सवारी, धन भी उनको दिलवाओ
श्रेष्ठ सचिव जो सूत चित्ररथ, गौएँ उनको दान करो  

No comments:

Post a Comment