Monday, July 20, 2015

श्रीराम का कौसल्या के भवन में जाकर माता को यह समाचार बताना

चतुर्थः सर्गः


श्रीराम को राज्य देने का निश्चय करके राजाका सुमन्त्र द्वारा पुनः श्रीराम को बुलवाकर उन्हें आवश्यक बातें बताना, श्रीराम का कौसल्या के भवन में जाकर माता को यह समाचार बताना और माता से आशीर्वाद पाकर लक्ष्मण से प्रेमपूर्वक वार्तालाप करके अपने महल में जाना

चले गये जब सब पुरवासी, देशकाल नियम के ज्ञाता
महिमाशाली नृप दशरथ ने, कर मन्त्रणा तय कर डाला

कल ही है नक्षत्र पुष्य, कल ही राजतिलक होगा
अंत पुर में जा राजा ने, पुनः राम को बुलवाया

गये सुमन्त्र तत्काल महल में, द्वारपाल ने दी सूचना
पुनः जरूरत क्या आने की, मन में एक संदेह हुआ

राजा ने बुला भेजा है, निर्णय आप को ही करना 
 शीघ्र गये पिता से मिलने, सुना वचन जब सुमन्त्र का

दूर से ही पिता को देखा, चरणों में झुकाया मस्तक
उन्हें उठाकर गले लगाया, दिया बैठने को आसन

श्रीराम ! मैं वृद्ध हुआ हूँ, भोगे भोग, यज्ञ कर डाले
तुम अनुपम, प्रिय सन्तान, स्वाध्याय, दान भी दिए

हर अभीष्ट सुख भी पाया, हुआ उऋण सबके ऋण से
तुम्हें बनाऊं युवराज अब, नहीं शेष कोई कर्त्तव्य

जो भी कहूँ मैं अब तुमसे, उसे तुम्हें अवश्य मानना  
युवराज का पद स्वीकारो, प्रजा बनाना चाहे राजा

बुरे स्वप्न देखता हूँ मैं, दिन में वज्रपात भी होता
बड़ा भयंकर शब्द कर रहीं, उल्काओं का पात हो रहा

ज्योतिषियों का है कहना, जन्म नक्षत्र मेरा आक्रांत
ग्रहों ने उसको घेर लिया है, सूर्य, मंगल, राहू नामक

अशुभ लक्षणों के आने पर, आपत्ति में पड़ता राजा
मृत्यु भी हो सकती है उसकी, ऐसा ही कहा जाता

मोह चित्त में छा जाये, उससे पूर्व ही यह काम हो
चंचल होती मति जीवों की, इस कार्य को शीघ्र करो

पुनर्वसु पर आज चन्द्रमा, कल होंगे पुष्य पर वे
सीता सहित करो उपवास, कुश की ही शैय्या होवे

सावधान रह करें सुरक्षा, सुह्रद तुम्हारे सब ओर से
विघ्नों की संभावना होती, ऐसे ही शुभ कार्यों में

जब तक भरत हैं ननिहाल में, तब तक पूर्ण कार्य हो    
भरत सत्पुरुष व जितेन्द्रिय, इसमें नहीं संदेह किसी को
बड़े भाई का करें अनुसरण, धर्मात्मा दयालु भी हैं
धर्म परायण सत्पुरुषों का, चित्त डोल सकता किन्तु है 

पिता के ऐसा कहने पर, व्रत पालन की आज्ञा पाकर
निज महल में राम चले गये, राजा को तब प्रणाम कर

सीता को बताना चाहा, पिता ने जो व्रत कहा राम से
किन्तु न पा महल में उसको, गये तुरंत माँ के महल में

मौन, रेशमी वस्त्र पहन कर, देवपूजा में वह लगी थीं
राजलक्ष्मी की ही याचना, पुत्र हेतु माँ करती थीं

राज्याभिषेक का समाचार सुन, सुमित्रा व लक्ष्मण आये   
सीता को भी वहीं बुलाया, कौसल्या थीं ध्यान लगाये

सीता, लक्ष्मण और सुमित्रा, उनकी सेवा में खड़े थे
परम पुरुष के ध्यान में थीं, पुत्र के मंगल के भाव से

माँ के निकट गये तब राम, कर प्रणाम कहा माता से
प्रजापालन के कर्म में मुझको, किया नियुक्त पूज्य पिता ने

कल होगा राज्याभिषेक भी, पिता ने यह आदेश दिया  
सीता को भी मेरे साथ, रात्रि में उपवास है करना

जो भी मंगलकारी कर्म हों, इस निमित्त आप कराएँ
माता को अति हर्ष हुआ सुन, आँखों में आँसू भर आये

चिर काल से जिस बात की, हृदय में अभिलाषा की थी
बात सुनी पूर्ति की उसकी, राम से तब यह बात कही

चिरंजीवी हो, हे पुत्र ! तुम, विघ्नकारी शत्रु मिट जाएँ
राजलक्ष्मी प्राप्त करो तुम, हर्ष सभी बंधुगण पायें

मंगलमय नक्षत्र में जन्मे, प्रिय पुत्र तुम हो मेरे
पिता को प्रसन्न किया है, गुणों द्वारा तुमने अपने
सफल हुए मेरे व्रत आदि, कमलनयन विष्णु के हित
इक्ष्वाकु कुल की राजलक्ष्मी, मिली है तुमको इस निमित्त

माता के ऐसा कहने पर, लक्ष्मण से यह कहा राम ने
संग मेरे तुम भी करो शासन, अंतरात्मा तुम हो मेरे

राजलक्ष्मी मिली है तुमको, भोगो अभीष्ट भोग व फल
तुमसे ही मेरा जीवन है, राज्य की इच्छा भी तुम संग

कह कर ऐसा भाई से तब, कर दोनों माओं को प्रणाम
सीता को साथ चलने की, दिला के आज्ञा गये तब राम


 इस प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मित आर्ष रामायण आदिकाव्य के अयोध्याकाण्ड में चौथा सर्ग पूरा हुआ.

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