Friday, April 24, 2015

दल-बल सहित राजा दशरथ की मिथिला-यात्रा और वहाँ राजा जनक के द्वारा उनका स्वागत-सत्कार

श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम् 

एकोनसप्ततितमः सर्गः

दल-बल सहित राजा दशरथ की मिथिला-यात्रा और वहाँ राजा जनक के द्वारा उनका स्वागत-सत्कार

हुई व्यतीत रात्रि जब वह, बन्धु-बांधवों सहित नरेश
हर्षित होकर उपाध्याय संग, सुमन्त्र को देते आदेश  

नाना रत्नों से हो सम्पन्न, धन लेकर धनाध्यक्ष अब
आगे चलें सुरक्षित होकर, हो व्यवस्था अति शीघ्र सब

कूच करे चतुरंगिणी सेना, ले सुंदर वाहन व पालकी
वसिष्ठ, वामदेव व कश्यप, चलें मार्कण्डेय, जाबालि

ब्रह्मर्षि कात्यायन भी चलें, रथ मेरा भी हो तैयार
राजा जनक के दूत कह रहे, शीघ्र ही हो यह सब व्यवहार

राजा की आज्ञानुसार ही, तब तैयार हुई थी सेना
ऋषियों संग राजा के पीछे, हो सज्जित प्रस्थान किया  

चार दिवस की कर यात्रा, पहुंचे वे विदेह देश में
समाचार सुन आने का तब, स्वागत किया जनक राजा ने

हर्षित हुए बहुत मिल दोनों, धन्य मान कहा जनक ने
प्राप्त करें प्रेम पुत्रों का, अति पराक्रम शाली हैं वे

वसिष्ठ मुनि भी यहाँ पधारे, देवों में ज्यों इंद्र शोभते
हुईं पराजित बाधाएँ सब, मेरे अति सौभाग्य बढ़े

बल से सम्पन्न और पराक्रमी, रघुकुल के हैं महापुरुष सब
मेरे कुल का मान बढ़ गया, रघुकुल से सम्बन्ध बना जब

कल प्रातः ही यज्ञ समाप्ति पर, आकर इन ऋषियों के साथ
सम्पन्न करें विवाह राम का, हे नर श्रेष्ठ ! दशरथ महाराज

राजा जनक की बात सुनी जब, कुशल वक्ता दशरथ यह बोले
प्रतिग्रह दाता के अधीन है, वही करेंगे, आप जो कहें

धर्मानुकुल, यशोवर्धक यह, जब राजा का यह वचन सुना
विस्मय हुआ मिथिला नरेश को, अंतर में अति हर्ष हुआ

सुख से रात बितायी सबने, इकदूजे से मिल थे हर्षित
विश्वामित्र को आगे करके, राम-लक्ष्मण गये पिता हित  

चरणों का स्पर्श किया जब, हुए प्रसन्न कुशल देखकर
मंगलाचार का हुआ सम्पादन, धर्मानुसार यज्ञ कार्य कर


इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में उनहत्तरवाँ सर्ग पूरा हुआ.


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