Thursday, March 5, 2015

राजा जनक का उनकी प्रशंसा करके उनसे विदा ले राजभवन को लौटना

श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम् 

पञ्चषष्टितम सर्गः

विश्वामित्र जी की घोर तपस्या, उन्हें ब्राह्णत्व की प्राप्ति तथा राजा जनक का उनकी प्रशंसा करके उनसे विदा ले राजभवन को लौटना

पाकर उत्तम ब्राह्मणत्व, पूजन किया मुनि वशिष्ठ का
विचरण करने लगे धरा पर, करके सफल मनोरथ अपना

 तप के मूर्तिमान स्वरूप, हैं राम ये वही मुनि
साक्षात् विग्रह धर्म के, परम निधि पराक्रम की  

कहकर ऐसा मौन हुए तब, शतानंद थे महातेजस्वी
हाथ जोड़ कहा जनक ने, मुनिवर आकर बड़ी कृपा की  

दर्शन देकर किया पवित्र, राम, लक्ष्मण को संग लाकर
 अद्भुत तप का यह वृतांत, धन्य हुआ यह गाथा सुनकर

है अनंत आपका बल भी, अप्रमेय तपस्या भी
माप और संख्या से परे, हैं अनेक आपके गुण भी

तृप्ति नहीं होती है सुनकर, किन्तु शाम ढलने को है
स्वागत है आपका मुनिवर, कल फिर मुझको दर्शन दें

विश्वामित्र हुए आनन्दित, राजा को फिर विदा किया
मिथिलापति ने की परिक्रमा, यज्ञ हेतु प्रस्थान किया

पूजित होकर महात्माओं से, विश्वामित्र भी लौट आए
जहाँ रुके थे उस स्थल पर, राम, लखन के संग आये  


इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में पैंसठवाँ सर्ग पूरा हुआ.







2 comments:

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