Thursday, July 25, 2013

विश्वामित्र सहित श्रीराम और लक्ष्मण का सरयू-गंगा संगम के समीप पुण्य आश्रम में रात को ठहरना

श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम् 

त्रयोविंशः सर्गः

विश्वामित्र सहित श्रीराम और लक्ष्मण का सरयू-गंगा संगम के समीप पुण्य आश्रम में रात को ठहरना

बीती रात हुआ प्रभात जब, वचन मुनि ने उन्हें कहे ये  
कुकुत्स्थ वंशी राजपुत्र जो, तृण-पत्र शय्या पर सोये

नरश्रेष्ठ हे राम ! प्रातः अब, सन्ध्यावन्दन करो जागकर
कहलाती सुपुत्र जननी है, कौशल्या तुम सा सुत पाकर

परम उदार वचन सुने जब, किया देव तर्पण, स्नान कर
परम जपनीय गायत्री का, करने लगे मंत्र जप वे फिर

नित्यकर्म समाप्त हुए जब, श्रीराम व वीर लक्ष्मण
कर प्रणाम तपोधन मुनि को, आगे जाने को थे उद्यत

जाते-जाते उन दोनों ने, किये पुण्य दर्शन हर्ष भर
त्रिपथगा नदी गंगा के, सरयू के शुभ संगम तट पर

संगम के निकट था स्थित, इक पवित्र आश्रम ऋषियों का
 हजार वर्षों से तप करते थे, शुद्ध था अंतः करण जिनका

हर्षित हुए थे दोनों भाई, पूछा मुनि से अति विनीत हो
कौन यहाँ रहता है मुनिवर ? जगी उत्सुकता अति प्रबल हो

हँसते हुए मुनि बोले तब, सुनो राम मैं परिचय देता
जिसे ‘काम’ कहते विद्वजन, पूर्व में वह मूर्तिमान था

इसी आश्रम में तप करते, स्थाणु शिव रहा करते थे
उठे समाधि से थे शिव, मरूद्गणों संग जा रहे थे

तभी किया आक्रमण उन पर, दुर्बुद्धि काम ने आकर
शिव ने तब हुन्कार भरी थी, रोषपूर्ण दृष्टि से लख कर  

 तब उस दुर्बुद्धि के सारे, जीर्ण-शीर्ण हो गिरे थे अंग
कहलाया प्रदेश वह ‘अंग’ तब, काम हुआ तब से अनंग

उन्हीं महादेव का आश्रम, मुनि जन ये शिष्य थे उनके
पाप नष्ट हुआ है इनका, धर्म परायण हैं सब ये

शुभदर्शन हे राम ! रात्रि को, यहीं विश्राम करेंगे हम
पुण्य सलिला सरिताओं को, कल प्रातः पार करेंगे हम

चलें इसी आश्रम में हम, होगा वास यहाँ उत्तम
जप-हवन कर सुख पूर्वक, रात्रि में करें विश्राम

वे संलग्न थे बातचीत में, उस आश्रम के मुनियों ने
जान लिया आगमन उनका, तप से मिली दूर दृष्टि से

हर्षित हुए आश्रम वासी, अर्ध्य पाद्य किया अर्पित
मुनि का स्वागत किया प्रेम से, राम लक्ष्मण को पूजित

भांति-भांति की कहीं कथायें, मनोरंजन भी किया था उनका
संध्या वन्दन, जप आदि कर, अतिथियों का सत्कार किया

उत्तम व्रत धारी मुनियों संग, शयन किया आश्रम में तब
सुखपूर्वक रात्रि बितायी, उस पुण्य स्थान में मिलकर  


इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में तेईसवां सर्ग पूरा हुआ.


1 comment:

  1. वाह क्या बात है भाषिक सौष्ठव और सौंदर्य की

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