Wednesday, May 22, 2013

राजा दशरथ का विश्वामित्र को अपना पुत्र देने से इंकार करना और विश्वामित्र का कुपित होना


श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम् 


विंश सर्गः

राजा दशरथ का विश्वामित्र को अपना पुत्र देने से इंकार करना और विश्वामित्र का कुपित होना 


दशरथ की यह बात सुनी जब, विश्वामित्र मुनि यह बोले
रावण नामक एक राक्षस, है महर्षि पुलत्स्य के कुल में

ब्रह्माजी से वर पाया है, महा पराक्रमी, बलशाली वह
कष्ट दे रहा त्रिलोक को, बहुसंख्यक राक्षसों से घिर वह

विश्रवा का पुत्र औरस है, भाई भी कुबेर का रावण
यज्ञों में स्वयं विघ्न न डाले, प्रेरक बनता वह दानव

मारीच संग असुर सुबाहु, विघ्न सदा डालते यज्ञ में
कैसे युद्ध करूंगा उससे ?, डरता हूँ, दशरथ यह बोले

कृपा करें मुझपर पुत्र संग, रावण अति बलशाली लगता
देव, नाग, गन्धर्व, पराजित, मानव कैसे टिक सकता

हर लेता बल बलवानों का, कैसे उससे युद्ध करूंगा
पुत्र अभी बहुत छोटा है, किसी तरह भी न दूंगा

सुन्द और उपसुन्द के पुत्र, मारीच, सुबाहु बलशाली हैं
एक के साथ युद्ध करने हित, पाता हूँ स्वयं को समर्थ मैं

दशरथ के ये वचन सुने जब, क्रोधित हुए अति विप्रवर
जैसे सिंचित घी से अग्नि, जल उठे मुनि क्रोध में भरकर


इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के बालकाण्ड में बीसवां सर्ग पूरा हुआ.



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