Monday, July 9, 2012

श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् चतुर्थ सर्ग


श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम् 

चतुर्थ सर्ग

महर्षि वाल्मीकि का चौबीस हजार श्लोकों से युक्त रामायण काव्य का निर्माण करके उसे लव-कुश को पढाना, मुनिमंडली में रामायण गान करके लव और कुश का प्रशंसित होना तथा अयोध्या में श्रीराम द्वारा सम्मानित हो उन दोनों का राम दरबार में रामायण गान सुनाना

 इस प्रकार की अति प्रशंसा, हर्षित होकर महर्षियों ने
पाकर कई पुरस्कार वे, मधुर राग से गायन करते

दिया किसी ने कलश, वल्कल वस्त्र भी भेंट दिया 
मृगचर्म करे अर्पित कोई, यज्ञोपवीत प्रदान किया

एक कमंडल दे हो हर्षित, मुंज मेखला दी दूजे ने
आसन दिया एक मुनि ने, कौपीन भी दिया चौथे ने

कुठार, गेरुआ वस्त्र भी मिला, जटा बांधने की रस्सी दी
चीर भेंट में मिला उन्हें, समिधा हेतु भी डोरी दी

यज्ञ पात्र दिया हर्ष में, काष्ठभार भी किया समर्पित
गूलर की लकड़ी का पीढ़ा, ढेरों आशीषें की अर्पित

कल्याण हो तुम दोनों का, आयुष भी हो दीर्घ तुम्हारी
इस प्रकार अनेक मुनियों ने, शुभकामनाएँ  दे डाली
आश्चर्य मय काव्य यह अनुपम, कथा सुनाता है राम की
परवर्ती कवियों के हेतु, है आधारशिला काव्य की

मधुर स्वर से गाने वाले, काव्य मधुर पुष्टि देता है
राजकुमारों हो कुशल तुम, कर्ण और मन को मोहता है

एक बार वे गए अयोध्या, गलियों, सड़कों पर गाते थे
भरत के भाई राम ने देखा, सदा प्रशंसा जो पाते थे

घर बुलाया बन्धु जनों को, समुचित आदर-मान दिया
तत्पश्चात गए सभा में, सुवर्ण सिहांसन ग्रहण किया
 क्रमशः

2 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति..आभार

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  2. ब्लॉग पर पधारने और उत्साहवर्धन का धन्यवाद.स्नेह इसी तरह मिलता रहेगा , ऐसी अपेक्षा है .
    बहुत सुन्दर सृजन, सुन्दर भाव, बधाई.

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