Thursday, April 12, 2012

श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्


श्री सीतारामाचन्द्राभ्या नमः
श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्
बालकाण्डम्
प्रथमः सर्गः
नारद जी का वाल्मीकि मुनि को संक्षेप से श्रीरामचरित्र सुनाना 



गुह को छोड़ गए फिर आगे, भारद्वाज मुनि के धाम
चित्रकूट पर्वत पर पहुँचे,  मुनि की आज्ञा पाकर राम

देव और गन्धर्व के सम ही, लीला करते तीनों रहते
सुंदर एक कुटीर बनाकर, वन की शोभा में थे रमते

पुत्रशोक से पीड़ित राजा, उनका बस रटते थे नाम
स्वर्ग सिधारे उसी शोक में, मुख पर था बस केवल राम

मिला राज्य भरत को लेकिन, उसे नहीं थी राज्य कामना
वन की ओर किय प्रस्थान , लौटें राम, थी यही भावना

वहाँ पहुँच सद्भावी भरत ने, कहा सत्य पराक्रमी राम से
हे धर्मज्ञ ! आप राजा हों, करूं याचना दोनों कर से

परम उदार, महा यशस्वी, महाबली, प्रसन्न मुख राम
राज्य की इच्छा न करके, पित्राज्ञा का रखा मान

चिह्न रूप में दिये खडाऊँ, आग्रह करके उन्हें लौटाया
राज्य करें वे अवधपुरी का, बड़े प्रेम से उन्हें मनाया

चरण स्पर्श किये भरत ने, इच्छा रही अधूरी मन में
प्रतीक्षा बस राम की करते, रहने लगे वे नंदी ग्राम में


   

3 comments:

  1. चरण स्पर्श किये भरत ने, इच्छा रही अधूरी मन में
    प्रतीक्षा बस राम की करते, रहने लगे वे नंदी ग्राम में
    बहुत सुंदर प्रस्तुति ....

    MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: आँसुओं की कीमत,....

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  2. आह ... कितना सहज लिखा है इस प्रसंग को ... आभार ...

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