Saturday, November 26, 2011

अध्यास-निरास


श्री मद् आदि शंकराचार्य द्वारा रचित
विवेक – चूड़ामणि

अध्यास-निरास

कर निरोध चित्त वृत्ति का, आत्मस्वरूप में स्थित हो
मन-वासना का क्षय होगा, अध्यास को दूर करो

रज, सत से करो तम का नाश, सत गुण से रज का विनाश
शुद्ध सत्व से सत का भी क्षय, शुद्ध सत्व से अध्यास निरास

प्रारब्ध से देह चलेगी, निश्चल भाव से करो साधना
धैर्य सदा रहे बुद्धि में, यत्नपूर्वक अध्यास त्यागना

जीव नहीं मैं ब्रह्म ही हूँ, जीव भाव का करो निषेध
इच्छा त्रय से मुक्त हुए तुम, अध्यास का करो निरोध

भ्रम से ही अध्यास हुआ है, यत्नपूर्वक इसको त्यागो
श्रुति भी यह कहती आयी है, आत्मानुभव से अब जागो

कुछ भी त्याज्य नहीं है मुनि को, बोध्वन को कुछ न ग्राह्य
आत्मा में ही सदा रहो तुम, अनात्म में अध्यास है त्याज्य

ब्रह्म आत्मा के ऐक्य को, बुद्धि द्वारा दृढ़ निश्चय कर
अहंकार को युक्त्चित्त से, दूर करो अध्यास निरंतर

निद्रा में भी बोध रहे, आत्म विस्मृति हो न पल भर
सदा करो आत्मचिंतन तुम, अनुसंधान को नहीं भुलाकर

देह अनित्य और विनाशी, है अशुद्ध यह सदा विचारो
आत्मा से होता प्रकाशित, अंतर्मन में उसे निहारो

घटाकाश ज्यों मिल जाता है, घट नाश पर महाकाश में
जीवभाव भी मिल जाता है, अध्यास पर परम भाव में

परब्रह्म जग का अधिष्ठान है, सत्य स्वरूप में एक हो रहो
पिंड व ब्रह्मांड उपाधि, तज दोनों को मुक्त हो रहो

देह बुद्धि को आत्म बुद्धि में, कर परिवर्तित स्थिर हो
आनंद रूप चिदात्मा में, लिंग-देह का मान तजो

दर्पण में ज्यों जगत दीखता, ब्रह्म में जगत का आभास
वह ब्रह्म मैं ही तो हूँ, इस बोध का करो अभ्यास

ब्रह्म सदा चेतन सत्य है, आनंद रूप अद्वितीय सत्ता
मूल स्वरूप उसे जानकर, देह भाव की तजो आस्था 

6 comments:

  1. निद्रा में भी बोध रहे, आत्म विस्मृति हो न पल भर
    सदा करो आत्मचिंतन तुम, अनुसंधान को नहीं भुलाकर

    यही हो जाये तो सम्पूर्ण मुक्ति हो जाये।

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  2. ब्रह्म सदा चेतन सत्य है, आनंद रूप अद्वितीय सत्ता
    मूल स्वरूप उसे जानकर, देह भाव की तजो आस्था
    बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

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  3. दर्पण में ज्यों जगत दीखता, ब्रह्म में जगत का आभास
    वह ब्रह्म मैं ही तो हूँ, इस बोध का करो अभ्यास

    ....बहुत ज्ञानप्रद....आभार

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  4. अनीता जी,...
    उपदेश देती जीवन का बोध कराती,
    बहुत अच्छी प्रस्तुति,..लाजबाब ...
    मेरे नए पोस्ट पर आपका इन्तजार है ...

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  5. परब्रह्म जग का अधिष्ठान है, सत्य स्वरूप में एक हो रहो
    पिंड व ब्रह्मांड उपाधि, तज दोनों को मुक्त हो रहो

    बहुत सुन्दर पंक्तियाँ सभी की सभी

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  6. वन्दना जी, सदा जी, कैलाश जी, धीरेन्द्र जी व नीलकमल जी आप सभी का बहुत बहुत आभार!

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