जीवन चलते-चलते बीता
थके कदम दो पल सुस्ता लें
कहीं न मिलती छांव,
जीवन चलते-चलते बीता
पाया नहीं पड़ाव !
काल शिकारी घात लगाये
बैठा लेकर दांव,
कब पासा सीधा पड़ जाये
थम जाएँ कब पांव !
क्या खोया क्या पाया हमने
कोई नहीं हिसाब,
जीवन भूलभुलैया या फिर
इक जादुई किताब !
अनिता निहालानी
३ मई २०११
क्या खोया क्या पाया हमने
ReplyDeleteकोई नहीं हिसाब,
जीवन भूलभुलैया या फिर
इक जादुई किताब !
सच में जिन्दगी भूल भुलैया का ही तो नाम है |
बहुत सुन्दर रचना |
जीवन भूलभूलैया या फिर इक जादुई किताब.
ReplyDeleteबहुत उम्दा रचना ।
क्या हिन्दी चिट्ठाकार अंग्रेजी में स्वयं को ज्यादा सहज महसूस कर रहे हैं ?
क्या खोया क्या पाया हमने
ReplyDeleteकोई नहीं हिसाब,
जीवन भूलभुलैया या फिर
इक जादुई किताब !
शायद कभी हम जान सकें..
सुन्दर रचना |
क्या खोया क्या पाया हमने
ReplyDeleteकोई नहीं हिसाब,
जीवन भूलभुलैया या फिर
इक जादुई किताब !jindgi ki suchaai ko apne sabdo me dhaal diya... bhut hi acchi rachna...
क्या खोया क्या पाया हमने
ReplyDeleteकोई नहीं हिसाब,
जीवन भूलभुलैया या फिर
इक जादुई किताब !
खोने को तो संसार है मगर पाने को सिर्फ "नेकी"
आभार.
काल शिकारी घात लगाये
ReplyDeleteबैठा लेकर दांव,
कब पासा सीधा पड़ जाये
थम जाएँ कब पांव
bilkul theek ..
wah kya kahna ...
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