Sunday, March 27, 2011

अनकहे गीत बड़े प्यारे हैं

अनकहे गीत बड़े प्यारे हैं


जो न छंद बद्ध हुए
बिल्कुल कुंआरे हैं
तिरते अभी नभ में   
गीत बड़े प्यारे हैं !

जो न अभी हुए मुखर
अर्थ क्या धारे हैं
ले चलें जाने किधर
 पार सिंधु उतारे हैं !

पानियों में संवरते
पी रहे गंध माटी
जी रहे ताप सहते
मौन रूप धारे हैं !

गीत गाँव की व्यथा के
भूली सी इक कथा के
गूंजते से, गुनगुनाते
अंतर संवारे हैं !

गीत जो हृदय छू लें
पल में उर पीर कहें
ले चलें अपने परों  
उस लोक से पुकारें हैं !

अनिता निहालानी
२७ मार्च २०११
 

10 comments:

  1. गीत गाँव की व्यथा के
    भूली सी इक कथा के
    गूंजते से, गुनगुनाते
    अंतर संवारे हैं !
    waah

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  2. गीत जो हृदय छू लें
    पल में उर पीर कहें
    ले चलें अपने परों
    उस लोक से पुकारें हैं !
    काव्य के माध्यम से दिल की बात कहना वाह ! बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति, बधाई

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  3. अव्यक्त की तरफ इशारा करता है गीत,उसमे न जाने क्या क्या छुपा हुआ है.समयआने पर ही फूल खिलते हैं फल पकते हैं और एक नई कविता का जन्म होता है.

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  4. आदरणीय रश्मिजी, सुनील जी तथा दीदी, आप सभी का आभार ! सही कहा है पता नहीं होता किस पल में क्या कौंधेगा भीतर जो शब्दों में व्यक्त होगा...

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  5. le chalen jane kidhar paar sindhu utaare hain .bahut sunder bhav..!!
    adbhut rachna -badhai.

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  6. जो न अभी हुए मुखर
    अर्थ क्या धारे हैं
    ले चलें जाने किधर
    पार सिंधु उतारे हैं !....

    बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !
    शुभकामनायें !

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  7. जो न छंद बद्ध हुए
    बिल्कुल कुंआरे हैं
    तिरते अभी नभ में
    गीत बड़े प्यारे हैं !
    अनिता जी, नए भावों की अनुगूँज गीत में बड़ी खूबसूरती से मुखरित हो रही है !
    साधुवाद !

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  8. Kunwaarepan ki aisi sundarata ab tak to kaheen naheen dekhi !

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  9. बहुत ही सुंदर काव्य प्रस्तुति...लाजवाब।

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  10. आप सभी का आभार !

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