Monday, March 14, 2011

जीवन जैसे एक बुलबुला

जीवन जैसे एक बुलबुला


जीवन जैसे एक बुलबुला
या फिर कोई स्वप्न सलोना
छाया हो इक चलती फिरती
किसी कवि की मधुर कल्पना !

ओस बूंद सा क्षणिक है जीवन
विद्युत दमके पल भर को ज्यों
एक ध्वनि घन श्याम रात्रि में
चौंध दामिनी खो जाये ज्यों

जैसे कोई मृग मरीचिका
उड़ता हुआ ख्याल किसी का
छाया हो इक चलती फिरती
किसी कवि की मधुर कल्पना !

अनिता निहालानी
१४ मार्च २०११

9 comments:

  1. सच कहा जीवन क्षणभगुर है……………बेहद उत्तम रचना।

    ReplyDelete
  2. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ..जीवन दर्शन को कहती हुई

    ReplyDelete
  3. ओस बूंद सा क्षणिक है जीवन
    विद्युत दमके पल भर को ज्यों
    क्षण भंगुर जीवन शत प्रतिशत सत्य , सुन्दर अभिव्यक्ति , बधाई

    ReplyDelete
  4. ओस बूंद सा क्षणिक है जीवन
    विद्युत दमके पल भर को ज्यों
    एक ध्वनि घन श्याम रात्रि में
    चौंध दामिनी खो जाये ज्यों

    बहुत सार्थक ...इतना सब कुछ जानते हुए भी मानव भौतिक सुखों के पीछे भाग रहा है..बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  5. ओस बूंद सा क्षणिक है जीवन
    विद्युत दमके पल भर को ज्यों
    एक ध्वनि घन श्याम रात्रि में
    चौंध दामिनी खो जाये ज्यों

    मर्मस्पर्शी एवं भावपूर्ण काव्यपंक्तियों के लिए कोटिश: बधाई !

    ReplyDelete
  6. आद. अनिता जी,
    जीवन का अदभुत विश्लेषण ,सटीक और सत्य ! ओस बूंद सा क्षणिक है जीवन
    विद्युत दमके पल भर को ज्यों
    एक ध्वनि घन श्याम रात्रि में
    चौंध दामिनी खो जाये ज्यों
    आभार!

    ReplyDelete
  7. बहुत प्यारी रचना...

    ReplyDelete
  8. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, आभार.

    होली के पावन पर्व की आपको अग्रिम शुभकामनाएं.

    ReplyDelete