Thursday, January 6, 2011

छूटी सारी सोच पुरानी

आज से कुछ वर्ष पूर्व जब पहली बार मैंने आर्ट ऑफ लिविंग का बेसिक कोर्स किया, तब श्री श्री रविशंकरजी के नाम से से मेरा प्रथम परिचय हुआ I सुदर्शन क्रिया के दौरान हुए अपूर्व अनुभव से जीवन को एक नया अर्थ मिला I श्रद्धा, प्रेम, विश्वास, आस्था ये सारे शब्द जैसे जीवंत हो उठे, भीतर कुछ द्रवित होकर बहने लगा, जो भावपूर्ण शब्दों में कागज पर उतरता चला गया I गुरूजी से मिलने का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ, वे आपने सहज व्यक्तित्त्व के द्वारा सारे विश्व में अपनी विशेष पहचान बना चुके हैं I अनगिनत साधकों को भीतर छिपी शक्ति, आनंद तथा ज्ञान का बोध कराने वाले सदगुरु के प्रति सहज ही कृतज्ञता व श्रद्धा के भाव उमड़ते हैं I 


छूटी सारी सोच पुरानी



तन का कण-कण शुद्ध हुआ
मन मस्तिष्क का पुनर्जन्म,
प्राणवायु प्रवाहित अविरत
नव ऊर्जा से पूरित हम !

मुक्ति पा सुख-दुःख कड़ियों से
कृष्ण भाव में हुए समाहित,
निर्मल अंतर, हृदय प्रेममय
एक उसी को किया समर्पित !

छलक उठा बरबस नयनों में
कृतज्ञता से पूरित जल,
जीवन दृष्टि पायी हमने
पाया है अतुलित सम्बल !

खुल गयीं गाठें, खुला हृदय
छूटी सारी सोच पुरानी,
ढूँढ रहे थे जिस मंजिल को
पायी वह मंजिल मस्तानी !

पाकर जिसको धन्य हुआ मन
कुंजी वह सभी को बाँटी,
खिला रहेगा अन्तर उपवन
कृपा है उसकी अनुपम थाती !

अनिता निहालानी
६ जनवरी २०११

2 comments:

  1. खुल गयीं गाठें, खुला हृदय
    छूटी सारी सोच पुरानी,
    ढूँढ रहे थे जिस मंजिल को
    पायी वह मंजिल मस्तानी !


    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति -
    शुभकामनाएं

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  2. साधू भाई गुरु बिन घोर अँधेरा,.............सुन्दर रचना!

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