Saturday, October 23, 2010

तुम मौन, गहन मौन प्रियतम !
मेरी पुकार सुनते तो हो
चुप, स्तब्ध, अडोल मैं भी तो हूँ
आतुर, कुछ मुझसे बोलो तो !

तुम आये जब, था होश नहीं
न पहचाना, न दिया ध्यान
भीतर कुछ अकुलाहट सी जगी
सुरभित दिशा से हुआ भान !

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